Bhartiya Manas Ka Vi-Aupniveshikaran

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भारत में आत्मविभाजन की एक व्याख्या मूलतः हिंदी में दार्शनिक अम्बिकादत्त शर्मा ने इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत की है। इस गंभीर विषय पर एक से अधिक व्याख्याएँ न सिर्फ़ संभव हैं बल्कि अभीष्ट भी।...

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भारत में आत्मविभाजन की एक व्याख्या मूलतः हिंदी में दार्शनिक अम्बिकादत्त शर्मा ने इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत की है। इस गंभीर विषय पर एक से अधिक व्याख्याएँ न सिर्फ़ संभव हैं बल्कि अभीष्ट भी।

About the Author:

प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा (जन्म : 1960) आप भारतीय तत्त्वविद्या, प्रमाणशास्त्र, भाषादर्शन एवं साभ्यतिक अध्ययन के दीक्षित और शिक्षित परिपृच्छाधर्मी अध्येता हैं। दर्शन और संस्कृतिचिन्तन के क्षेत्र में आपके वैचारिक-विमर्शपरक लेखन समकालीन भारतीय दार्शनिकों में समादृत हैं। आपके द्वारा लिखित एवं सम्पादित बीस से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हैं। भारत के वैचारिक स्वराज और राष्ट्रभाषा के राजपथ पर दर्शन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान एवं प्रगत शोधपरक गवेषणाओं के लिए आपको अनेक सम्मानों से विभूषित किया गया है। प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा सम्प्रति डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म.प्र.) में दर्शनशास्त्र के आचार्य, दर्शन प्रतिष्ठान, जयपुर से प्रकाशित पत्रिका `उन्मीलन` के सम्पादक और डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की शोध-पत्रिका `मध्य भारती` के प्रधान सम्पादक हैं।

ISBN: 9789389830446
Author: Ambikadatt Sharma
Binding: Hardcover
Pages: 112
Publication date: 01-01-2020
Publisher: Setu Prakashan Samuh
Imprint: Setu Prakashan
Language: Hindi