WAH HANSI BAHUT KUCH KEHTI THI – Rajesh Joshi (Hardcover)
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Wah Hansi Bahut Kuch Kehti Thi – Rajesh Joshi
मुझे लगता है कि जिस सृजनात्मक साहित्य, कला और संगीत को बाजार कमोडिटी में तब्दील नहीं कर पाता वह उससे डरता हैं। वह उसके खिलाफ तरह-तरह के प्रपंच रखता है। बाजार का यह डर दिनोदिन बढ़ रहा है।
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नयी प्रौद्योगिकी ने विधाओं की पारंपरिक संरचनाओं में बहुत उलट-फेर कर दिया है। विधाओं के पुराने स्ट्रक्चर टूट रहे हैं या उनमें तरह-तरह के बदलाव आ रहे हैं। इसमें कुछ नया रचने की प्रयोगधर्मिता से ज्यादा बेचैनी है। कुछ अराजकता भी। पारंपरिक विधाओं के चेहरे या तो बासी हो गये हैं या उनमें आ रहे बदलाव ने उनके नाक-नक्श को इस तरह बदल डाला है कि उनकी नयी शक्ल अभी मुकम्मल आकार नहीं ले पा रही है। मुझे लगता है कि गैर कथात्मक गद्य शायद अभिव्यक्ति के लिए एकाएक ज़्यादा विश्वसनीय हो गया है। वह रचनाकार को अन्य विधाओं की बनिस्बत अधिक स्वतंत्रता देता है। शायद हमारे समय को और जीवन में हो रहे बदलावों को रचने के लिए वह अधिक उन्मुक्त करता है। एक स्तर पर सोचें तो लंबे समय से निर्वासन सह रहे हमारे निबंध का यह नये अवतार में पुनर्वास है। इसे पूरी तरह गैर कथात्मक कहना भी पूरी तरह सही नहीं होगा। यह ऐसा निर्बंध गद्य है जिसमें गद्य की सभी पारंपरिक विधाओं की भी आवाजाही लगातार बनी रहती है। कह सकते हैं कि यह बंदर सभा और शिवशंभू के चिट्ठे की परंपरा का विस्तार है। इसके नाक-नक्श का ठीक-ठीक बयान करना संभव नहीं है। यह किताब इसी तरह के गद्य में गाहे-बगाहे लिखी गयी इबारतों का संग्रह है। इसमें कई पुराने प्रसंगों के संदर्भ में आज के सवालों को देखने की कोशिश है। यात्राओं की डायरियाँ हैं। बिछड़ गये अपने रचनाकार मित्रों और अग्रजों की स्मृतियाँ हैं। गाहे-बगाहे लिखी गयी कुछ टिप्पणियाँ हैं। और अंत में कविता के बारे में एक छोटा सा वक्तव्य भी।
About the Author:
जन्म : 18 जुलाई, 1946, नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश। रचनाएँ : ‘समरगाथा’, ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’, ‘मिट्टी का चेहरा’, ‘नेपथ्य में हँसी’, ‘दो पंक्तियों के बीच’, ‘चाँद की वर्तनी’; ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ तथा ‘कवि ने कहा’ (चयन); एक दिन बोलेंगे पेड़’ और ‘मिट्टी का चेहरा’ का संयुक्त संग्रह ‘धूपघड़ी’ (कविता); ‘सोमवार और अन्य कहानियाँ’, ‘कपिल का पेड़ तथा ‘मेरी चुनिंदा कहानियाँ’ (कहानी); ‘एक कवि की नोटबुक’, ‘एक कवि की दूसरी नोटबुक’; ‘वह हँसी बहुत कुछ कहती है’, ‘जादू जंगल’, ‘अच्छे आदमी’, ‘तुम सआदत हसन मंटो हो’, ‘पाँसे’, ‘सपना मेरा यही सखि’, ‘कहत कबीर’, ‘हमें जवाब चाहिए’ और कुछ टेली फिल्म्स की पटकथा तथा अनेक रचनाओं का नाट्य रूपांतर (नाटक); ‘किस्सा-कोताह’ (औपन्यासिक आख्यान); भतृहरि की कुछ कविताओं की अनुरचना और मायकोवस्की की कविताओं का अनुवाद तथा अनेक रचनाओं और कई पत्रिकाओं एवं उनके विशेषांकों का संपादन। पुरस्कार : साहित्य अकादेमी पुरस्कार, निराला स्मृति सम्मान, श्रीकांत वर्मा स्मृति सम्मान, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, नागार्जुन सम्मान, शिखर सम्मान, पहल सम्मान, शमशेर सम्मान, मुकुट बिहारी सरोज सम्मान, शशिभूषण स्मृति नाट्य सम्मान तथा कैफ़ी आज़मी सम्मान आदि।
ISBN | 9789389830286 |
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Author | Rajesh Joshi |
Binding | Hardcover |
Pages | 160 |
Publisher | Setu Prakashan Samuh |
Imprint | Setu Prakashan |
Language | Hindi |
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