Pansokha Hai Indradhanush

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सन् 1972-73 के आस-पास से अपनी काव्य-यात्रा शुरू करने वाले कवि मदन कश्यप का छठा संग्रह है-'पनसोखा है इन्द्रधनुष'। लगभग आधी शताब्दी की यह काव्य-यात्रा कई मायनों में विशिष्ट रही है, चुनौतीपूर्ण भी। मदन कश्यप के काव्य-व्यक्तित्व के वैशिष्ट्य को यह संग्रह कई अर्थों में ज्यादा प्रोद्भासित करता है। पहला कि सघन राजनीत�...

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सन् 1972-73 के आस-पास से अपनी काव्य-यात्रा शुरू करने वाले कवि मदन कश्यप का छठा संग्रह है-'पनसोखा है इन्द्रधनुष'। लगभग आधी शताब्दी की यह काव्य-यात्रा कई मायनों में विशिष्ट रही है, चुनौतीपूर्ण भी। मदन कश्यप के काव्य-व्यक्तित्व के वैशिष्ट्य को यह संग्रह कई अर्थों में ज्यादा प्रोद्भासित करता है। पहला कि सघन राजनीतिक चेतना स्पष्टता और निर्भीकता से अपने मार्ग पर अविचल है। ऊपर से देखने पर इन कविताओं में शोषक वर्ग और उनकी विभिन्न चालाकियों के प्रति गहरा प्रहार और संघात है। पर इन कविताओं में छिपी गहरी द्विआयामिता का दूसरा आयाम भी यहीं है। प्रहार और संघात के समानान्तर जनता के प्रति गहरा लगाव, अपनी माटी से जुड़ाव, मनुष्यता के मसृण भावों का सत्कार भी है। तभी वह कहता है- भूमि और पर्वत की तरह आसान नहीं है /आदमी को पराजित करना। 'पिता का हत्यारा' मानवीय मूल्यों के सड़न की कविता है, परन्तु यह सड़न किन्हीं स्वच्छ मानवीय मूल्य के समानान्तर ही तो होगा। यह समानान्तरता निर्मित कर सकने की क्षमता मदन कश्यप के काव्य-व्यक्तित्व की अप्रतिम विशेषता है। दूसरे इस संग्रह की कविताओं में मानवीय सम्बन्ध, उसके विभिन्न रूप हैं, तो उसकी संवेदनात्मक संरचना भी विविधवर्णी है। तीन उपखण्डों में विभक्त ये कविताएँ वास्तव में सामाजिक के रूप में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ हैं । ये अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ ही मदन कश्यप के सन्दर्भ में अलग-अलग संवेदनात्मक संरचनाओं को जन्म देती हैं। 'चैट कविताएँ' इस दृष्टि से बहुत इन्टरेस्टिंग हैं। तीसरे इस कविता संग्रह में वे पहले की तुलना में ज्यादा आंचलिक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। समय के इस बिन्दु पर 'ग्लोबल गाँव' ने गाँवों के रहन-सहन, बोली-बानी, आचरण को नष्ट किया है। ऐसे में गाँव, उससे जुड़े सन्दर्भ (समाज, राजनीति आदि) साहित्य के केन्द्र से लगातार खारिज भी हुए हैं। ऐसे समय में, जब मदन कश्यप आंचलिक शब्दों का अपेक्षाकृत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, तो यह हमारा ध्यान खींचता है, क्योंकि यह उस 'ग्लोबल गाँव' के सामने खड़े हो जाने जैसा है-कमजोर हथियारों के साथ, उसके बावजूद। यह 'ग्लोबल गाँव' की उग्रता के विरुद्ध रक्षात्मक नहीं, प्रतिरोधात्मक गुण है। इसीलिए 'जब पैसे बहुत कम थे' कविता, लगता है बार्टर सिस्टम की कविता है, पर यह पूँजीवादी उग्रता के विरुद्ध एक सन्दर्भ निर्मित करती नजर आती है। संग्रह की कविताएँ समसामयिकता के साथ जिस जिरह को प्रस्तावित करती हैं, वह भारत का जीवन्त वर्तमान है। इस दृष्टि से 'डपोरशंख' खण्ड की सभी कविताएँ महत्त्वपूर्ण हैं। इन कविताओं से जो वर्तमान हमारे समक्ष उभरता है, वह एकबारगी हमें परेशान करता है। परेशानी का कारण वर्ण्य विषय नहीं, उस समाज का प्रत्यक्ष हो जाना है, जिसमें हम जी रहे हैं। इस संग्रह की कविताओं में एक तरफ बातचीत का गद्य है, तो दूसरी तरफ आन्तरिक लय का सुघटत्व भी; इनमें एक ओर भाव है, भावोच्छ्वास है, तो दूसरी ओर विचार और वैचारिक प्रतिवाद भी है, वैचारिक प्रतिबद्धता और नैतिक साहस भी। इन दो सीमान्तों के बीच बसी कविता में, इसीलिए 'किन्तु', 'परन्तु' आदि योजक-चिह्नों का बहुत प्रयोग है। कवि ने इन कविताओं के माध्यम से एक तरफ जीवन को साधा है, तो दूसरी तरफ पाठकों से संवाद भी स्थापित किया है।

About the Author:

वरिष्ठ कवि और पत्रकार। अब तक छ: कविता-संग्रह–'लेकिन उदास है पृथ्वी' (1992, 2019), 'नीम रोशनी में' (2000), 'दूर तक चुप्पी' (2014, 2020), 'अपना ही देश', कुरुज (2016) और 'पनसोखा है इन्द्रधनुष' (2019); आलेखों के तीन संकलन-'मतभेद' (2002), 'लहलहान लोकतंत्र' (2006) और 'राष्ट्रवाद का संकट' (2014) और सम्पादित पुस्तक 'सेतु विचार : माओ त्सेतुङ' प्रकाशित। चुनी हुई कविताओं का एक संग्रह 'कवि ने कहा' शृंखला में प्रकाशित। कविता के लिए प्राप्त पुरस्कारों में शमशेर सम्मान, केदार सम्मान, नागार्जुन पुरस्कार और बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान उल्लेखनीय। कुछ कविताओं का अंग्रेजी और कई अन्य भाषाओं में अनुवाद। हिन्दीतर भाषाओं में प्रकाशित समकालीन हिन्दी कविता के संकलनों और पत्रिकाओं के हिन्दी केन्द्रित अंकों में कविताएँ संकलित और प्रकाशित। दूरदर्शन, आकाशवाणी, साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, हिन्दी अकादमी आदि के आयोजनों में व्याख्यान और काव्यपाठ। देश के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित संगोष्ठियों में भागीदारी। विभिन्न शहरों में एकल काव्यपाठ।

ISBN: 9788194008781
Author: Madan Kashyap
Binding: Paperback
Pages: 107
Publication date:
Publisher: Setu Prakashan Samuh
Imprint: Setu Prakashan
Language: Hindi