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रेणु जी के जीवन की महागाथा का अप्रतिम दस्तावेज़
कवि अज्ञेय के उपन्यास "शेखर एक जीवनी" की तर्ज पर भारत यायावर ने रेणु जी की जीवन कथा का नाम"रेणु एक जीवनी"रखाl यायावर जी ने पुस्तक की प्रस्तावना में ईमानदारी से इस बात को लिखा है-"मैं जब भी दिग्भ्रमित होता हूँ अज्ञेय के पास जाता हूँl अज्ञेय ने ही रास्ता बताया-"शेखर एक जीवनी को देखिएl मैंने गौर से देखा और"रेणु एक जीवनी"नाम ही रखा l 548 पृष्ठों में लिखी गई रेणु की महागाथा का यह प्रथम खंड है जिसमें रेणु के जीवन से जुड़ी 1955 तक की समस्त घटनाओं को दिलचस्प ढंग से वर्णन किया गया है l रेणु जी के बचपन किशोरावस्था युवावस्था के अनेक दिलचस्प प्रसंगों को यायावर जी ने बहुत प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया है रेणु जी के विश्व विख्यात उपन्यास "मैला आंचल"के प्रकाशन की बड़ी मार्मिक लेकिन दिलचस्प कहानी यायावर जी ने बयां की है l
रेणु जी की तरह यायावर जी भी बेहतरीन किस्सा गो है l अनेक जगह विषयांतर होते हुए भी पठनीयता की लय नहीं टूटने देते भारत यायावरl शैलेन्द्र की फिल्म फिल्म"तीसरी कसम "को भी पूरा होने में पांच साल से अधिक का समय लगा l रेणु जी के "मैला आंचल" उपन्यास को पूरा करने और प्रकाशित करने में चार साल से अधिक समय लग गया l रेणु जी ने मैला आंचल का पहला ड्राफ्ट 1950 में लिखाl डायरी में लिखे वृतांत को 1952 में पुनः लिखा l 1953 में तीसरी पाठ तैयार किया l अपने साहित्यिक मित्र हिमांशु श्रीवास्तव को पहली बार उपन्यास के कुछ अंश पढ़कर सुनाए l कोई प्रकाशक इस उपन्यास को छापने के लिए राजी नहीं हो रहा थाl आंचलिक भाषा के कारण भी कई प्रकाशक छापने से किनारा कर रहे थे l बाद में यहीं आंचलिकता का जादू ही इस पुस्तक की लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार बना l मैला आंचल को टाईप फॉर्म में तैयार करने के लिए चौथा ड्राफ्ट रेणु जी ने तैयार कियाl प्रकाशन के सिलसिले में भागल पुर की यात्रा की वहां से भी निराश लौटे आखिरकार यह तय हुआ कि उपन्यास को स्वयं ही छपवाएl समता प्रकाशन के मालिक रजी साहब ने बिना मुनाफा लिए 1600 रुपए में एक हजार प्रतियां छापने की बात कीl
रेणु जी के पास सौ रुपए भी नहीं थे और सोलह सौ रुपए का जुगाड बहुत मुश्किल काम था लेकिन रेणु जी के दोस्तों रिश्तेदारों ने 1200 रुपए इकट्ठा कर दिए जिसमें लतिका जी का हिस्सा भी शामिल था l बाकी रकम प्रकाशक को पुस्तकें बेचकर देने का करार नामा हुआ l बहुत ज़द्दो ज़हद के बाद मैला आंचल अगस्त 1954 में प्रकाशित हुआl रेणु जी के ज़िन्दगी का बहुत ही खुशनुमा महीना l लेखक मित्रों नागार्जुन रामवृक्ष बेनीपुरी नलिन विलोचन शर्मा शिवपूजन सहाय आदि को पुस्तक उपहार में दी गईl नागार्जुन जी ने पुस्तक की समीक्षा लिखने का वायदा किया लेकिन पूरा नहीं कियाl पहली समीक्षा धर्मवीर भारती जी ने कीl उन्होंने रेणु को मिथिला भूमि का दूसरा विद्यापति बतायाl मन्मथ नाथ गुप्त ने मैला आंचल को "गोदान" के बाद का सबसे अच्छा उपन्यास घोषित किया l नामवर सिंह की बेहतरीन समीक्षा ने रेणु जी और मैला आंचल को आंचलिक चर्चा से उठाकर राष्ट्रीय चर्चा का केंद्र बना दियाl
नलिन विलोचन शर्मा जी की मैला आंचल की समीक्षा रेडियो पर प्रसारित होने के कारण पुस्तक की लोकप्रियता में इजाफा हुआl "मैला आंचल" की यशो गाथा से प्रभावित होकर उसकी प्रतियों की बिक्री और उसके पुनः प्रकाशन की जिम्मेदारी राजकमल प्रकाशन ने संभाली l रेणु जी एक स्टार लेखक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए l
भारत यायावर ने रेणु जी के जीवन से जुड़े अनेक किस्सों और संघर्ष को अनेक अध्यायों में चित्रित किया हैl रेणु की पिटाई, पहला जेल गमन, पहला पुरस्कार, बी पी कोइराला की कथा, नेपाल का मुक्ति संग्राम, गांधी की जगह लोहिया, जाति ही पूछो रेणु की और धरती का लेखक आदि अध्यायों को बहुत ही रोचक और प्रामाणिक ढंग से लिखा हैl 1956 से 1977 तक की जीवन यात्रा को भारत यायावर दूसरे खंड में प्रस्तुत करेंगेl "रेणु एक जीवनी"रेणु जी के प्रेमियों के लिए भारत यायावर की ओर से अनुपम उपहार हैl भारत यायावर की अथक मेहनत को सैकड़ों सलाम l सेतु प्रकाशन और रजा फाउंडेशन को इस नायाब और कामयाब पुस्तक के लिए साधुवाद l