Mridula Garg

मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर, 1938 को कोलकाता में हुआ। 1960 में उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और तीन साल कॉलेज में अध्यापन किया। 1971 में रचनात्मक लेखन आरम्भ किया। पहला उपन्यास उसके हिस्से की धूप व कथा संग्रह कितनी कैदें, 1975 में प्रकाशित हुए थे। तबसे स्वतन्त्र रूप से रचनारत हैं। करीब 11 संग्रहों में 82 कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। 1973-2003 तक की सम्पूर्ण कहानियाँ, संगति-विसंगति नाम से दो खण्डों में संगृहीत हैं। 7 उपन्यास हैं, उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, मैं और मैं, कठगुलाब तथा मिलजुल मन। 4 नाटक, एक और अजनबी, जादू का कालीन, कितनी कैदें व साम दाम दण्ड भेद व 2 निबन्ध संग्रह रंग-ढंग, चुकाते नहीं सवाल और 1 यात्रा संस्मरण कुछ अटके कुछ भटके प्रकाशित हुए हैं। कठगुलाब और चित्तकोबरा तथा कई कहानियाँ देश-विदेश की अनेक भाषाओं में अनूदित। 2003 से इंडिया टुडे (हिन्दी) में पाक्षिक स्तम्भ कटाक्ष लिख रही हैं। 2003-2005 तक के लेख, कर लेंगे सब हज़म नाम से पुस्तक रूप में प्रकाशित हैं। सम्मान: 2004 में उपन्यास कठगुलाब को व्यास सम्मान प्राप्त हुआ। 2003 में इसी कृति पर वाग्देवी सम्मान प्राप्त हुआ था। 1988-89 में दिल्ली हिन्दी अकादमी से साहित्यकार सम्मान, 1999 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से साहित्य भूषण और 2001 में न्यूयार्क ह्यूमन राइट्स वॉच से हैलमन हैमट ग्रान्ट व मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् से उपन्यास उसके हिस्से की धूप तथा नाटक जादू का कालीन को कृति पुरस्कार मिल चुके हैं। अनेक देशो का यात्राएँ भी की।

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