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Apoorvanand
आलोचना अपूर्वानंद का व्यसन है। आलोचना अपने व्यापक अर्थ और आशय में । आलोचना का लक्ष्य पूरा मानवीय जीवन है, साहित्य जिसकी एक गतिविधि है। इसलिए शिक्षा, संस्कृति और राजनीति की आलोचना के बिना साहित्य की आलोचना संभव नहीं। लेखक के साहित्यिक आलोचनात्मक निबंधों के दो संकलन, 'सुंदर का स्वप्न' और 'साहित्य का एकांत', ‘यह प्रेमचंद हैं’ प्रकाशित हैं। कुछ समय तक आलोचना' पत्रिका का संपादन।
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Yeh Premchand Hain
Rs.339
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