J P Naik

श्री नाईक को यूनेस्को की विश्व के शिक्षाविदों की सूची में होने का गौरव प्राप्त हुआ है। वे एक क्रान्तिकारी सुधारक और रूढ़िविरोधी प्रशासक थे और उनका दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा सामाजिक न्याय और विकास का एक साधन है। सरकारी पदों पर एक रुपये मासिक के सांकेतिक वेतन पर कार्य करते हुए वे बहुत ही सादगी का जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें स्थापित शैक्षिक व्यवस्था और उससे जुड़े हुए राजनीतिक समूहों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। भारत की आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के अनुरूप एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का गठन करना उनका चिरस्थायी लक्ष्य था। उन्होंने गहन अनुसन्धान के बाद सैकड़ों लेख, अनेक पुस्तकें और आयोगों तथा समितियों की बहुसंख्यक रिपोर्ट लिखी थी। शिक्षा आयोग (1964-66) की विस्तृत रिपोर्ट लिखने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। श्री नाईक सच्चे देशभक्त थे। बाईस वर्ष की आय में उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया, जिसके लिये उन्होंने कॉलेज में गणित के शिक्षक पद से त्यागपत्र दे दिया। उन्हें दो वर्ष के कठोर सश्रम सहित कारावास की सजा हुई। गाँधीवादी भावना का पालन करते हुए उन्होंने जेल के अस्पताल में स्वेच्छा से वार्ड बॉय का कार्य करना स्वीकार किया। इस अवसर का लाभ उठाते हुए उन्होंने चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन किया। जेल से छूटने के बाद श्री नाईक ने ग्रामीण स्वास्थ्य और शिक्षा के कार्य में अपने को समर्पित कर दिया। वे सात वर्षों तक गाँवों में काम करते रहे। उनक जन्म एक सुदर गाँव के निर्धन परिवार में हुआ था। नौ वर्ष की आयु तक वे कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करते रहे और अपने आप पढ़कर उन्होंने प्राथमिक परीक्षा पास की। उन्होंने गाँव की गरीबी को गहराई से अनुभव किया था। बाद में उन्होंने भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के परामर्शदाता के रूप में कार्य किया। वे भारतीय समाज विज्ञान अनुसन्धान परिषद् के सदस्य सचिव थे। उन्होंने यूनेस्को के लिए विश्वव्यापी प्राथमिक शिक्षा की कराची योजना और अडिसअबाबा योजना बनाई थी आदि-आदि। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जो चिकित्सक न होने पर भी इण्डियन मेडिकल एसोसियेशन के एक सम्मेलन में लक्ष्मण स्वामी मुदालियर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किये गये थे।