Virendra kumar jain

जन्म : 17 अक्टूबर 1915 मंदसौर मध्यप्रदेश में। शिक्षा : आरम्भिक शिक्षा मंदसौर में हुई। हाईस्कूल तथा बी.ए. हॉल्कर कॉलेज, इन्दौर से तथा एम.ए. हिन्दी में नागपुर से किया। जीवनक्रम : साहित्यिक जीवन का आरम्भ इन्दौर में सन् 1934 के आसपास कविता और कहानी में एक साथ। इन्दौर के वर्षों में मिल तथा सेक्रेटरिएट में क्लर्की की। जन्मभूमि मालवा के गहरे रागात्मक संस्कारों के बावजूद रचनात्मक व्यक्तित्व के संघटन में बम्बई की कर्मभूमि का ही साथ अधिक रहा। सन् 1945 से वे वहीं थे। सन् 45 से '50 तक के बेकारी के वर्षों में अभियान' और 'भारतमाता' का संपादन किया। तदुपरांत 'धर्मयुग' के सहायक संपादक रहे 1960 तक। इसके बाद भारतीय विद्या भवन की पत्रिका 'भारती' के प्रधान सम्पादक रहे सन् '65 तक। बाद में विले-पार्ले के मीठीबाई कॉलेज में प्राध्यापन किया। कृतियाँ : 'आत्मपरिणय' (कहानी संग्रह : 1940), 'शेषदान' (कहानी संग्रह : 1947), 'मुक्तिदूत' (पौराणिक उपन्यास : 1947), 'प्रकाश की खोज में' (चिंतनात्मक निबंध : 1948), 'अनागता की आँखें' (कविता संग्रह : 1959), 'यातना का सूर्यपुरुष' (कविता संग्रह : 1965), 'शून्य पुरुष और वस्तुएँ' (कविता संग्रह : 1972), 'अनुत्तर योगी : तीर्थंकर महावीर' (चार खंडों में बृहत् उपन्यास : 1974 से 1981) तथा 'एक और नीलांजना' (कहानियाँ)। मौलिक साहित्य सुजन के साथ-साथ कई महत्त्वपूर्ण विदेशी पुस्तकों का अनुवाद भी किया, जिनमें 'मैस्टर एकर्ट', 'संत टेरेसा की आत्मकथा' एवं संत ऑगुस्तीन के 'कन्फेशन्स' प्रमुख हैं। गुजराती के झवेरचन्द मेधाणी तथा क. मा. मुन्शी की रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद। सम्मान पुरस्कार : 1974-म.प्र. कला परिषद् तुलसी सम्मान 1981-भारतीय भाषा परिषद-अनुत्तर योगी (1, 2, 3, 4 खंडों में) 1986-शिखर सम्मान-समग्र कृतित्व के लिए 1986- मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार-मुक्तिदूत के लिए। 1984-सारस्वत सम्मान।