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Nazeer Akbrabadi
(1735-1830) नज़ीर-शेख वली मुहम्मद 1735 ई. में दिल्ली में पैदा हुए। पिता का नाम मुहम्मद फ़ारूक़ था। मां आगरे के क़िलेदार नवाब सुल्तान खां की बेटी थी। पिता अज़ीमाबाद के किसी नवाब के यहां नौकरी के लिए गये और वहीं उन का देहान्त हो गया। वे क़रीब 22 वर्ष की आयु में दिल्ली से आगरा चले गये और मिठाई के पुल के पास रहने लगे। उन की शादी तहव्वुरनिस्सा बेगम से हुई। दो बच्चे हुए—बेटा गुलज़ार अली और बेटी इमामी बेगम। इमामी बेगम की बेटी विलायती बेगम थी। नज़ीर के बारे में अधिकांश जानकारी इन्हीं के माध्यम से प्राप्त होती है। नज़ीर बच्चों को पढ़ाते थे। आगरा से उन्हें इतना प्यार था कि लखनऊ और भरतपुर (राजस्थान) के राजघराने के निमंत्रण को भी अस्वीकार कर दिया और आगरे ही में बच्चों को पढ़ाते रहे। आख़िर में बिलास राय के बच्चों को सत्रह रुपये महीना पर पढ़ाने लगे। अंतिम तीन वर्षों में लकवे से पीड़ित रहे और 1830 को देहान्त हुआ। नज़ीर अनेक भाषाओं के जानकार थे। फ़ारसी, उर्दू और हिन्दी के अलावा अरबी और पंजाबी भी जानते थे। जीवन-काल में उन का कोई दीवान नहीं छपा। बिलास राय के लड़के पढ़ने के दौरान उन की नज़्में और ग़ज़लें लिखते जाते थे। इन्हीं की बदौलत नज़ीर का पहला कुल्लियात (समग्र) मेरठ से प्रकाशित हुआ। बाद में प्रोफ़ेसर अब्दुल ग़फूर शहबाज़ ने शोध और आवश्यक संशोधन कर के 1900 ई. में उर्दू के प्रसिद्ध प्रेस मुंशी नवलकिशोर, लखनऊ से न सिर्फ़ नज़ीर का कुल्लियात (समग्र) सम्पादित किया बल्कि नज़ीर की जीवनी “ज़िंदगानी-ए-बेनज़ीर” भी लिखी। कुल्लियात (समग्र) के अलावा नज़ीर के तीन और दीवान भी हैं—दो उर्दू में तथा एक फ़ारसी में। गद्य में नज़ीर ने उर्दू की एक किताब “फ़ेहम क़रीन" और फ़ारसी में नौ किताबें लिखीं। फ़ारसी की किताबों में सब से महत्त्वपूर्ण किताब “बज़्मे-ऐश" है जिस में नज़ीर ने आगरे के मेलों का विस्तृत वर्णन किया है। इस किताब की अधिकांश नज़्में उर्दू में प्रकाशित हो चुकी हैं।