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Muhammad asdullah beg khan-Ghalib
मुहम्मद असदुल्लाह बेग ख़ाँ 'ग़ालिब' का जन्म 27 दिसम्बर, 1707 ई. को आगरा में हुआ। पिता का नाम अब्दल्लाह बेग ख़ाँ और माँ का नाम इज़्ज़तुन्निसा बेगम था। 1802 ई. में रियासत अलवर (राजस्थान) में मलाज़मत के दौरान पिता की मृत्यु होने पर, चाचा नसरउल्लाह बेग ख़ाँ न परवरिश की। 19 अगस्त, 1810 को दिल्ली के इलाही बख़्श ख़ाँ 'मारूफ़' की छोटी बेटी उमराव बेगम से शादी। 1812-13 में दिल्ली में स्थायी निवास। दिल्ली के दामाद होने के कारण, नौशा (दुल्हा) कहलाये और मिर्ज़ा नौशा के नाम से भी पुकारे जाने लगे। शाइरी का आग़ाज़ 1807-08 में हुआ और 'असद' उपनाम रखा। 1816 ई. में 'ग़ालिब' तख़ल्लुस (उपनाम) रखा। 16 अप्रैल, 1833 ई. में दीवान संपादित हुआ परन्तु पहला संस्करण अक्टूबर, 1841 में प्रकाशित हुआ। 1826-27 ई. में फ़ारसी शाइरी का बाक़ायदा आग़ाज़। फ़ारसी का दीवान 29 अप्रैल, 1835 में सम्पादित हुआ और पहला संस्करण 1845 में प्रकाशित हुआ। 4 जुलाई, 1850 को तैमूरी ख़ानदान का इतिहास लिखने पर. नियुक्त हुए तथा 'नज्मुद्दौला, दबीरुलमुल्क, निज़ाम जंग' का ख़िताब पाया। उनके जीवन-काल में दीवान. के पांच संस्करण प्रकाशित हुए। पांचवां संस्करण 1863 ई. में प्रकाशित हुआ। 1862 ई. में सम्पूर्ण फ़ारसी गद्य प्रकाशित हुआ जिस में तीन किताबें शामिल थीं—पंज आहंग, मेहरे-नीमरोज़ और दस्तम्बू। अपने गोद लिए बेटे 'आरिफ़' के बेटों को फ़ारसी तथा उर्दू पढ़ाने के लिए क़ादिर नामा' लिखा जो दिसम्बर, 1856 ई. में पहली बार तथा 1864 ई. में दूसरी बार छपा। 15 फरवरी, 1869 ई. को अनेक रोगों से ग्रसित 'ग़ालिब' का सान्त हुआ। बस्ती निज़ामद्दीन में लोहारू ख़ानदान की हड़वाड़ में दफ़्न 'मृत्यु के बाद 6 मार्च, 1869 ई. को उर्दू पत्रों का संकलन 'उर्दू-एमोअला' के नाम से प्रकाशित हुआ।