Meer taki meer

मीर तक़ी 'मीर' का जन्म (सितम्बर, 1723 ई.) आगरे में हआ। पिता अली मृतक़्क़ी का पूरा नाम मीर मुहम्मद अली था। पिता सूफ़ियाँ की संगत में रहते-रहते स्वयं सूफ़ी हो गये थे और अपने इस नन्हे बेटे को 'इश्क़' करने की प्रेरणा देते रहे। पिता की मृत्यु के बाद ग्यारह साल . की आयु में दिल्ली आये। जहाँ समसामुद्दौला ने एक रुपया रोज़ाना का वज़ीफ़ा देना शुरू किया। 30 जनवरी, 1739 को नादिरशाह की सेना से लड़ते हुए समसामुद्दौला की मृत्यु हो गई। वज़ीफ़ा बन्द हो गया। बेरोज़गारी ने विक्षिप्त कर दिया। विक्षिप्त अवस्था ही में एक काल्पनिक सुन्दरी (?) के प्रेम-पाश में बंध गये। प्रारम्भिक शिक्षा सौतेले मामा ख़ान आरजू से प्राप्त की। 1747-48 में पहला ब्याह किया। पहले दीवान का सम्पादन 1752 ई. के आसपास हुआ। 1752 में आलोचनात्मक पुस्तक तकिरा निकातुश्शोअरा समाप्त की। 175761 में अहमदशाह अब्दाली के दिल्ली पर हमले और लूट-मार और बाद में राजा नागरमल की मृत्यु के बाद 1780-81 में लखनऊ चले गये। पहली पत्नी की मृत्यु के बाद 1783-84 में दूसरी शादी की। 20 सितम्बर, 1810 को देहान्त हुआ। जहाँ 'मीर' दफ़्न हुए वहाँ लखनऊ स्टेशन है। मीर के छः दीवान हैं। मीर-समग्र (कुल्लियात) का पहला प्रकाशन मीर की मृत्यु के एक साल बाद 1811 में हुआ। मीर को सभा समकालीन और बाद के शाडरों ने सम्मान से स्मरण किया है। वे उर्दू के पहले बड़े शायर होने के साथ-साथ भारतीय भाषाओं का उर्द में समावेश करने वाले कवि हैं। आधुनिक उर्दू कवि फ़िराक़ और उन के बाद नासिर काज़मी तक मीर से प्रभावित रहे हैं।