Tulsidas

भक्त शिरोमणि कवि तुलसीदास का जन्म श्रावण शुक्ला सप्तमी संवत् 1554 में बांदा जिले के राजापुर गांव में हुआ था। इनके पिता आत्माराम दुबे व माता हलसी थीं। वे सरयू पारीण ब्राह्मण थे। माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया। ननिहाल में चुनिया नाम की दासी ने तुलसी का साढ़े पांच वर्ष तक लालन-पालन किया। चुनिया का भी देहांत हो गया। रामशैल पर रहने वाले श्री नरहरिदास ने इनका यज्ञोपवीत करके इन्हें अपना शिष्य बना लिया। विद्याध्ययन के बाद वे गुरु से आज्ञा लेकर अपनी जन्मभूमि लौट आए। गांव में ही तुलसीदास का विवाह दीनबंधु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ। जनश्रुति है कि रत्नावली से अपने प्रति कटु वचनों को सुनकर वे विरक्त होकर काशी चले गए। संवत् 1631 में उन्होंने अपनी प्रथम रचना 'रामचरितमानस' को लिखना प्रारंभ किया। पश्चात् उन्होंने विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, रामलला नछह, कृष्ण गीतावली, वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, हनुमान बाहुक आदि रचनाएं लिखीं। इन ग्रंथों की भाषा अवधी और ब्रज है। संस्कृत भाषा के प्रकांड पंडित होते हुए भी लोकमानस के हित के लिए उन्होंने अपनी रचनाएं लोक-भाषा में लिखीं। संवत् 1680 श्रावण कृष्णा तृतीया शनिवार के दिन असी घाट पर उनकी देह पंच तत्त्वों में विलीन हो गई। इस पुस्तक में उनकी चार कृतियों—विनय पत्रिका, रामचरितमानस, गीतावली और कवितावली से भक्ति, नीति, समन्वय और काव्य-सौष्ठव से संबंधित पदों का चयन किया गया है। भक्तिकाल में तुलसीदास रामभक्ति शाखा के अन्यतम कवि माने जाते हैं। गोस्वामीजी की भक्ति पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता है—उसकी सर्वांगपूर्णता, उनकी समूची काव्य साधना विरुद्धों के सामंजस्य की साधना का ही अप्रतिम उदाहरण है। अविरोध शांति, प्रेम, करुणा, शील इनकी काव्य संपदा है। तुलसीदास की भाषा की बड़ी विशेषता है-प्रसंगानुकूल, रसानुकूल शब्द चयन। केवल भाववादी दृष्टि से ही नहीं, काव्यशास्त्रीय दृष्टि से भी वे अपनी परंपरा एवं समकालीन कवियों में अग्रगण्य हैं। उनका काव्य-कौशल, अभिव्यक्ति सामर्थ्य देखते ही बनता है। यह संचयन उसी की सार्थक बानगी है।