Jayshanker Prasad

(1889-1937) जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के सुप्रसिद्ध संघनीसाह परिवार में हआ। साहित्यिक रुचि के इनके पिता देवीप्रसादजी के घर साहित्यकारों का जमघट लगा ही रहता था। प्रसाद का सम्पूर्ण साहित्य उनके गम्भीर अध्ययन, चिन्तन, मनन और पारिवारिक वातावरण का प्रतिफलन है। इन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा है। एक नाटककार के रूप में हिन्दी नाटकों को नया आयाम प्रदान करने का श्रेय जयशंकर प्रसाद को ही है। प्रसाद के प्रयास से ही हिन्दी नाटक भारतीय संस्कृति की उपलब्धियों, राष्ट्रीय भावनाओं, ऐतिहासिक घटनाओं के द्वारा आधुनिक समस्याओं से युक्त हुए। प्रसाद ने जहाँ अपनी रचनाओं में नारी चरित्रों की सुन्दर, करुणामयी, वेदनामयी तथा कर्तव्यनिष्ठ अवतारणा की, वहीं उनमें उत्कृष्ट काव्यात्मक गीतों की रचना कर अपने नाटकों में स्थान दिया। उनके द्वारा रचित कुल तेरह नाटकों में चन्द्रगुप्त उनका बारहवाँ नाटक है जो सन् 1931 में पहली बार प्रकाशित हुआ। उनकी अन्तिम नाट्य रचना ध्रुवस्वामिनी है जो 1933 में प्रकाशित हुई।