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Kobad Ghandy
मुंबई के एक उच्च मध्यवर्गीय पारसी परिवार में जन्मे कोबाड गांधी की पढ़ाई-लिखाई पहले मुंबई के सेण्ट मेरी स्कूल और फिर देहरादून के दून स्कूल में हुई जहाँ उन्होंने 1963 में निर्धारित पाठ्यक्रम पूरा किया। मुम्बई में 1968 में रसायन विज्ञान से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट की पढ़ाई के लिए लंदन गए। उनका करियर उन्हे मोटी कमाई, ऊँची हैसियत और हर तरह की सुख-सुविधा की दुनिया में ले जाता, लेकिन अन्याय के प्रति क्षोभ तथा शोषितों-पीड़ितों के प्रति उनकी संवेदनशीलता ने यह होने न दिया। लंदन में रंगभेद के अनुभव से वह हैरान रह गये और इसका विरोध उन्हे जेल की सलाखों के पीछे ले गया। लंदन में तीन माह के कारावास ने उनकी जिन्दगी की दिशा बदल दी। वह स्वदेश लौटे तो करियर की सीढ़ियाँ चढ़ने के बजाय दलितों और अन्य दबे-कुचले तबकों की आवाज बन गये। उनका जीवन जुल्म के विरोध, मानवाधिकारों की रक्षा और न्याय तथा बराबरी के लिए समर्पित वामपंथी एक्टिविस्ट का रहा है। अलबत्ता उन्हे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। एक दशक तक उन्हें कैद में रहना पड़ा। इस किताब में उनके और उनकी जीवन संगिनी व एक्टिविस्ट अनुराधा के संघर्षों के संस्मरण तो हैं ही, विभिन्न जेलों तथा न्याय प्रणाली के बरसों-बरस के उनके अनुभव भी इसमें विस्तार से, बखूबी दर्ज हैं।